अज्ञात मित्रता |
पहले व्यंग ने हवा भरी , |
तत्पश्चात मर्मभेदी टिपण्णी आई , |
छोटी उपहासी मुस्कराहट ,संदिग्ध भावें |
ओह ! विवाद आरम्भ हो गया ! |
समय गुज़रता गया ……. |
केवल एक अवनाछित प्रकृति को ग्रहण कर हम ने आरम्भ किया . |
यद्यपि उपहास जितना चिरकालीन होता जाता है , |
एक दुसरे की पहचान का प्रत्यक्षीकरण उतना ही कड़ा हो जाता है . |
विडम्बना - मेरा एकमात्र लक्ष्य है - ''आपका वास्तविक तथा यथार्थ अनावरण ' |
दुर्भाग्य से ,समय ने उस व्यनाग्योक्ति को एक विशाल दानव का सा स्वरुप दे दिया है |
जिसके सम्मुख हम दोनों के वास्तविक यथार्थ महत्वहीन प्रतीत होते हैं . |
यदि मैं ने कभी आपसे पूछा होता ,की क्या हम इस परिस्तिथि को सुधार सकते है |
आप का निश्चित ही , ये उत्तर होता ,"हाँ हम ऐसा कर सकते हैं ." |
ये निश्चित है के प्रकृति अपना कार्य करगी , |
हम परेशानिओं को अपास्त कर ,अपने जीवन में आगे बढ़ेंगे |
यद्यपि हमारे मानस में ,हमें पृथक करती सीमा हमेशा विद्यमान रहेगी , |
क्या हमारी मित्रता कभी भी निश्चिन्त एवं सत्य होगी ? |
(अपने मानस में ……..) |
मैं आशा करता हूँ ….. |
मैं प्रार्थना करता हूँ ……… |
Usually my head likes to speak for itself And I get tired of it's constant talking so I sit down and pen down some of the thoughts .
Thursday, 23 February 2012
अज्ञात मित्रता (by Vipin sharma)
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